Sunday 23 May 2021

रुकना नहीं था मुझको...

#जो जिंदगी में हर बार हार जाता है
जो खुद को भीड़ में तन्हा पाता है
ठिठककर सफल लोगों को देखकर
फिर सोचता है,.. रुकना नहीं था मुझको,..!

#प्रीतिसमकितसुराना

जब कोई अपना जाता है



जिनसे प्यार हो दिल में उनकी तस्वीर बन जाती है,
माना रोज देखते हैं उन्हें पर आँखें रोज भर आती है,
उन्हें मेरी आँखों मे आँसू नहीं थे कभी भी पसंद,
ये बात उन्हें देख देखकर ज्यादा रुलाती है।

डॉ प्रीति समकित सुराना

Saturday 22 May 2021

बन और बिखर रहे हैं

न सूरज सा जलने के हुनर
न उगना उगाना
पर हर शाम ढल रहे हैं 

न मंजिल का पता
न रास्ते का ठिकाना
बस बेमकसद चल रहे हैं 

न चाँद सी शीतलता
न ढंग का रंग रुप
फिर भी ख्वाबों में निकल रहे हैं 

न बर्फ सी तासीर
न जमना न पिघलना
लेकिन जम और पिघल रहे हैं। 

न मिट्टी होने का अहसास
न मिट्टी होकर मिट्टी में मिलने का हौसला
देखो तो जुर्रत हमारी
बार-बार बन और बिखर रहे हैं। 

हर शाम ढल रहे हैं
बेमकसद चल रहे हैं
ख्वाबों में निकल रहे हैं
जम और पिघल रहे हैं।
बन और बिखर रहे हैं। 

प्रीति समकित सुराना

Friday 21 May 2021

कलम ही छोड़ दी मैंने,...!

कलम ही छोड़ दी मैंने,...!

प्रेम लिखूँ कैसे
रुदन सांसों में घुल रहा हो जब
विरह सहूँ कैसे
कोई अपना बिछुड़ रहा हो जब
माहौल देखकर फरेबी
कलम ही छोड़ दी मैंने

जुनून सा था ये
नया कुछ करना है जमाने में
जुटी हुई थी मैं तो
जीवन की नई राहें बनाने में
मगन रहती थी मकसद में
लगन वो तोड़ दी मैंने

उठती ही तरंगे भी
खुशहाल वतन के सपने की
रुख नाराज़ कुदरत का
कोशिश की बहुत मनाने की
हिम्मत जो रगों में बहती थी
लहर भी मोड़ दी मैनें

सजाया था घरौंदा एक
एक अनोखे ही अंदाज का
खाका एक खींचा था
उन्नत समृद्ध समाज का
प्रकृति पर उम्मीदों से लबालब
गागर फोड़ दी मैंने

लहर भी मोड़ दी मैनें
लगन वो तोड़ दी मैंने
दवातें फोड़ दी मैंने
कलम ही छोड़ दी मैंने,...!

प्रीति समकित सुराना

Wednesday 12 May 2021

कल्याण मित्र

*हर एक दोस्त जरूरी होता है* 

आज मैं इस बात को हमारे गुरुजनों के दर्शनानुसार एक नए तरीके से पल्लवित करने का प्रयास कर रही हूँ।
जीवन मे नौ रस, सात रंग होते है सभी का अलग अलग अनुपातों में मिश्रण नए रंग और नए रस का जनक होता है। उसी तरह मित्र भी व्यवहार और साहचर्य के अनुसार पाँच प्रकार के होते हैं।
1. खाली मित्र
2. ताली मित्र
3. प्याली मित्र
4. थाली मित्र
5. कल्याण मित्र
आप सभी सोच रहे होंगे कि ये किस प्रकार के मित्रों की बात कर रही हूँ? है न!
अति संक्षिप्त व्याख्या कर रही हूँ, जब कोई बिल्कुल खाली हो और कोई कामधाम न हो तो आपके पास आकर घंटों बैठ जाए वो है *खाली मित्र*, आपके पास बैठे तो बैठे आपकी हर बात पर आपके मुँह पर तारीफ करे (पीठ पीछे राम जाने) वो होता है *ताली मित्र*, जो चाय या वाय के लिए हमप्याला होने को मिलता जुलता रहे वो है *प्याली मित्र*, जिसे बाहर खाने का शौक हो लेकिन हर बार अपनी जेब खाली न करने की गरज से आपके साथ खाने-पीने-घूमने को जाए वो है *थाली मित्र*!
वास्तविकता ये है कि समय समय पर हमें इन सभी मित्रों की आवश्यकता महसूस होती रहती है, और हम भी किसी के लिए इनमें से किसी श्रेणी के मित्र हो सकते हैं।
अब बात करते हैं *कल्याण मित्र* की,...! 
वो मित्र जो खाली या अकेलेपन में सबके पहले याद आए, दुख बाँटने या खुशी मनाने में जरुरी हो, हम प्याला हो या हमनिवाला हो लेकिन हमारी पसंद और जरूरतों का हमसे ज्यादा जिसे अंदाजा हो, हमारी सफलता पर जिसका सीना गर्व से फूल जाता हो लेकिन हमारी गलती पर सबसे ज्यादा रोकता, टोकता, डाँटता या समझाता हो, जिस मित्र में हर तरह से, हर परिस्थिति में साथ निभाने का जज्बा हो। जो माँ की ममता, पिता का साया, भाई/बहन का प्रेम और स्पष्टवादी मित्र हो, वो होता है *कल्याण मित्र*। और हर एक मित्र जरुरी होता है लेकिन कल्याण मित्र जीवन के लिए ऑक्सीजन होता है। न मिले तो दुर्दशा कैसी ये हम और आप सभी जानते हैं। 

मेरे सभी कल्याण मित्रों को समर्पित यह रचना 

दोस्ती      एक    ऐसा     रिश्ता
जिसमें      उम्र,    जाति,    धर्म, 
पैसा,    काम,  या परिवार  नहीं
मायने      रखता   है    व्यवहार,
अटूट     विश्वास     और    प्यार
कह    सकें  दिल  की  हर  बात
बिन भूमिका या बिन ये कहे कि 
किसी   से    कहना  मत    यार,
और     हो     सके   बिना   द्वेष
दोस्त   की  खुशी  में  हम  खुश
दुख में हो  जाए  ये  मन  आहत
मैं और तुम 'हम' बनकर निभाएं 
ताउम्र  ये रिश्ता  यही है चाहत। 

मेरे सभी मित्रों के जीवन मे कोई न कोई कल्याण मित्र जरुर हो ये कामना हमेशा करुँगी, और मेरे सभी मित्रों को मेरा मित्र होने के लिए दिल से आभार -> 

साथ ही एक सच यह भी👇🏼
काफिला साथ चलता है अकसर कामयाबी के बाद,..
बिरले ही होते हैं जो संघर्ष में साथ देते हैं,.
कामयाब होने के बाद हाथ थामने वालों को क्या कहूं,..?
"दोस्त" वो होते हैं जो मुश्किल वक्त में हाथों में हाथ देते हैं,..!
संस्थापक
अन्तरा शब्दशक्ति
*डॉ प्रीति समकित सुराना*

समर्पित आप श्री के चरणों में,

मेरा शौर्य  और संवेग  समर्पित आप श्री के चरणों में, 
वाणी  आपकी  ही  गूंजती  है प्रतिपल  मेरे कर्णों  में,
सूरी पीयूष,  सम्यक ही बस गए मेरी हैं इन आँखों में,
गुरुवर सानिध्य का संकल्प सजा दो मेरे मन के वर्णों में।

डॉ प्रीति समकित सुराना

माँ का प्यार

जिसका प्यार  कभी अल्प नहीं होता,
जिसके बिना कोई संकल्प नहीं होता,
केवल "माँ का प्यार" ही है दुनिया में,
जिसका कोई भी  विकल्प नहीं होता।

#डॉप्रीतिसमकितसुराना

चमत्कार से कम नहीं,..!


            दो बिल्कुल विपरीत लड़कियाँ रुप, रंग, व्यक्तित्व, व्यवहार, परिस्थितियाँ और परिवेश की 3 माह 21 दिन का उम्र में फर्क था। छोटी लड़की के पहले जन्मदिन में मोहल्ले के बच्चों के साथ पहली बच्ची को भी बुलाया गया। उस पहली मुलाकात के बाद एक मोहल्ला, एक ही रिक्शा, एक ही स्कूल लेकिन केजी1 से 10वीं तक अलग अलग सेक्शन्स में रहीं या ये समझ लीजिए कि दोनों की दोस्ती के कारण रखा गया। ग्यारहवीं में एक ही विषय होने के बाद सिर्फ 2 साल एक क्लास में रहीं। घर पर भी परिवारों में बहुत मेल न था। एक तरह से एक के घर सर्व सुविधाओं के बीच बंधन कसे हुए थे, एक के घर सीमित साधनों में भी आजादी के एहसास थे। एक के घर दूसरी आती तो शान्ति से दबे पांव, दबी आवाज़ और दबे अंदाज़ में दूसरी के घर पहली आती तो झूले की पेंगों से भी तेज, तूफान की तरह और शरारतों की टोकरी लिए।
        वक़्त ने करवट ली। पहली जो ननिहाल में रही बचपन से वो पहुँच गई नाना घर से अपने घर। वहाँ से 3 साल बाद ससुराल। उसकी शादी के 4 साल बाद दूसरी की शादी हुई।
        सच कहूँ तो आज भी सैंकड़ों मीलों की दूरी है, दोनों में कोई समानता, कोई स्वार्थ, कोई लाभ-हानि नहीं सिर्फ एक ही आधार पर टिका है दोनों का रिश्ता वो है "विश्वास युक्त प्रेम"।
        हाँ! आज पूजा का जन्मदिन है और प्रीति-पूजा की विस्मयकारी दोस्ती की 44वीं वर्षगाँठ भी। जो किसी *चमत्कार* से कम नहीं। ढेरों शिकायतों के बाद भी दोनों खुश हैं साथ-साथ वो भी ताउम्र दोस्ती निभाने के लिए सपरिवार❤️😘। 

डॉ प्रीति समकित सुराना

तमस घनेरा छट जाएगा

तमस घनेरा छट जाएगा
नया सबेरा फिर आएगा 

कहा समय ने ही ये मुझसे
बुरा समय है कट जाएगा 

समय समय की है ये बातें
समय नया दिन खुद लाएगा 

नहीं बदल पाया जीवन तो
समय ठहर कैसे पाएगा 

कल फिर कल वो होगा जिसमें
नया सबेरा फिर आएगा
बुरा समय है कट जाएगा
तमस घनेरा छट जाएगा 

डॉ प्रीति समकित सुराना

Friday 30 April 2021

बेड़ा पार करेंगे राम

छोड़ बुरे करो अच्छे काम।
सहना सीखो छाँव-घाम।
धैर्य धारण कर लोगे जब,
तो बेड़ा पार करेंगे राम।। 

सच्चा भक्त, या हो वाम।
करे दंड-भेद-दाम या साम।
उद्देश्य अगर लोकहित हो,
तो बेड़ा पार करेंगे राम।। 

चरण प्रभु के लेना थाम।
जाकर राम प्रभु के धाम।
जनहित की करना याचना,
तो बेड़ा पार करेंगे राम।। 

याद रखो बस सुबह-शाम।
नाम जपो तुम आठो याम।
मैले मन को निर्मल कर लो,
तो बेड़ा पार करेंगे राम।। 

केवल जपना नहीं है नाम।
कर्मों का ही मिलेगा दाम।
कर्म यदि होंगे अच्छे सब,
तो बेड़ा पार करेंगे राम।। 

डॉ प्रीति समकित सुराना

मानवता की परीक्षा है

बीते  तीन  दिनों में  तीन अपनों को खोया है
पल-पल,  बात-बात  पर मन ये मेरा  रोया है
हे! ईश्वर कैसी कठिन मानवता  की परीक्षा है
तू बतला भगवान कि तू जाग रहा या सोया है 

डॉ प्रीति समकित सुराना

#आसमाँ कुछ बोल

छोटी सी मेरी औकात
क्या दूँ मैं कोई सौगात

पीड़ा तीखी दिल में आज
गिन न सकी इतने आघात

सुख मानो कुछ पल की ओस
दुख आँसू की है बरसात

अब तू आसमान कुछ बोल
तुझ संग है तारों की बारात

अब सुखमय हो हर इक जीव
दिन हो खुश, जगमग हो रात।

डॉ प्रीति समकित सुराना

Friday 16 April 2021

*हिंदी साहित्य राष्ट्र गौरव सम्मान*

*सूचना एवं सम्मान* के लिए हार्दिक आभार आदरणीय, मार्गदर्शक और परम मित्र Dinesh Dehati Kavi जी एवं साहित्य संगम संस्था तिरोड़ी का जिन्होंने यह सूचना [30/03, 15:32] को व्हाटसप पर दी। 

"हिंदी साहित्य के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन करने एवं अपनी निरंतर हिंदी लेखन  में सफलता के लिए *डॉ प्रीति समकित सुराना वारासिवनी* को *हिंदी साहित्य राष्ट्र गौरव सम्मान* 10 अप्रैल को राष्ट्रीय साहित्यकार सम्मेलन तिरोड़ी द्वारा प्रदान किया जाएगा।"

सहचलन

*सहचलन*

जितने नकारात्मक या बचकाने काम है
अकेली उंगली से हो जाते है

कनिष्का से कुट्टी करना या लघुशंका का इशारा,
अनामिका से नुक़्क़ीन बांधना
(यानि न छूने का इशारा)
मध्यमा दिखाकर गाली देना
तर्जनी से दोषारोपण
और अंगूठे से धत्ता दिखाना!

पर
कनिष्का से कहा की कलम पकड़ ले
अनामिका से अपेक्षा की कनिष्का का साथ दे
मध्यमा से निवेदन किया पन्ने पलट ले
तर्जनी से कहा मुझे मेरे दोषों से अवगत करा
अंगूठे से कहा तर्जनी से मिले बिना सब कुछ लिखकर बता।

सब ने एक स्वर में एक ही बात कही 
कोई भी अच्छा काम किसी एक उंगली का नहीं है 
दूसरी उंगली का सहारा लेना ही पड़ता है।

तब एकता और मुष्ठी के बल
और सहचलन के सिद्धांत पर
मेरा यकीन अटल हो गया

जो मैं नहीं कर सकती 
वो हम करने की ताकत रखते हैं
विचारणीय है,...
यूँ भी कहावतें यूँही नहीं बनती
कहा गया है
*अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता*

*डॉ प्रीति समकित सुराना*

Thursday 15 April 2021

जिंदगी! देख

जिंदगी! देख
तू है तो सब कुछ है
तू है और मैं मर-मर कर जियूँ
ये ठीक तो नही है न?
और तेरे लिए ही
हर हालात से 
लड़ना सीख लिया है मैंने,..
छलावा नहीं है
अब मेरी मुस्कुराहट में
अपने दर्द और आँसुओं को
पीना सीख लिया मैंने,..
हाँ जिंदगी! देख
मैं खुश हूँ
और
तेरी खातिर
जीना सीख लिया मैंने,..!

डॉ प्रीति समकित सुराना

*समर्थ नारी गौरव सम्मान* 2021

मेरी 14 पुस्तक "सृष्टि मेरे आँचल में,..!"
(लिपिबध्द पुस्तक एवं ईबुक दोनों प्रकाशित)

*समर्थ नारी गौरव सम्मान* 2021 
(अप्रतियोगी)

ईबुक का लिंक
सृष्टि मेरे आंचल में - डॉ. प्रीति सुराना - antrashabdshakti.com/2021/04/09/सृष्टि-मेरे-आंचल-में-डॉ-प्/

सभी पुस्तकें एक साथ 👇🏼
antrashabdshakti.com/category/समर्थ-नारी-गौरव-सम्मान/

निम्नलिखित *आ. रचनाकारों* को
अन्तरा शब्द शक्ति प्रकाशन एवं संस्था द्वारा आयोजित लेखन प्रतियोगिता में सक्रिय सहभागिता, साहित्य सेवा एवं सृजन हेतु *समर्थ नारी गौरव सम्मान 2021* से सम्मानित किया जाता है।

विश्व महिला दिवस 8 मार्च को आयोजित लेखन प्रतियोगिता जिसमें सभी रचनाकारों की 16 पेज की लघु पुस्तिका प्रकाशित की गई है। कोरोना महामारी की विषम परिस्थितियों के चलते चाहकर भी विमोचन का आयोजन नहीं कर पा रहे हैं इसलिए इस बार ईविमोचन एवं सम्मान का आयोजन किया गया। जिसमें सभी रचनाकारों को 10 पुस्तकें, सम्मान पत्र और स्मृति चिन्ह डाक द्वारा भेजा जा रहा है। प्रथम विजेता को 500/ द्वितीय विजेता को 300/ तृतीय विजेता को 200/- की नगद राशि खाते में भेजी गई।
निर्णायक की भूमिका डॉ भारती वर्मा बौड़ाई (मार्गदर्शक), कीर्ति प्रदीप वर्मा (महासचिव), पूजा दीपक राठौड़ (संयोजक) ने निभाई।

प्रतिभागियों के नाम

1. मंजू सरावगी (प्रथम)
2. पिंकी परुथी 'अनामिका' (द्वितीय)
3. किरण विचपुरिया (द्वितीय)
4. तोषी गुप्ता (तृतीय)
5. लीना शर्मा
6. अदिति रूसिया
7. संगीता देवांगन
8. सोनाली तिवारी 'दीपशिखा'
9. डॉ हेमा पाण्डेय
10. ऋतु कोचर
11. मीना विवेक जैन
12. देवयानी नायक
13. मीनाक्षी सुकुमारन
14. सुषमा सोनी 'टीना'
15. पूजा राठौर (निर्णायक)
16. कीर्ति वर्मा (निर्णायक)
17. डॉ. भारती वर्मा बौड़ाई (निर्णायक)
18. 
डॉ प्रीति समकित सुराना 
(आयोजक एवं संस्थापक)
अन्तरा शब्दशक्ति प्रकाशन एवं संस्था

मेरी 13वीं पुस्तक "प्रीत के गीत"

मेरी 13वीं पुस्तक "प्रीत के गीत" 
यूँ तो विमोचन हुए तीन महीने से ज्यादा हो गए हैं पर आज पन्ने पलटते हुए मन किया कि सखी Ranjana जी का आभार व्यक्त करुँ जिनकी लिखी भूमिका ने मेरी पुस्तक का महत्व बढ़ा दिया।
दिल से आभार सहित प्रस्तुत है उनकी लिखी भूमिका👇🏼

प्रीत के गीत की गूँज
=============
             अक्षर ब्रह्म है। शब्दों में समाहित अक्षर-समूह जीवन रचना का आधार है। अक्षर ही अभिव्यक्ति है और बाह्य-अन्तर अभिव्यक्ति ही अध्ययन-अनुभव, चरित्र और संस्कार की परिचायक है। शब्द लालित्य, मधुरता और पावित्र्य सहेज कर रखना और भावनात्मक सम्बन्धों को अपनी रचनाओं में जीवित रखना एक कवि की नैतिक जिम्मेदारी है।

उदयभानु हंस कहते हैं कि ----
             "वह शक्ति है कवि की कलम में जिससे इस धरती को वह स्वर्ग बना सकता है !"

             मन की गहरी झील में भाव हों और दृष्टि में सपने सजाने और पूरा करने की क्षमता, तो समूची कायनात स्थितियाँ पैदा करने का कारण बन ही जाती है, परन्तु किसी निर्झर की महीन ध्वनि मन के गहन अरण्य के एकान्त में तब तक सुनाई नहीं देती है, जब तक हम अपने मन के कोलाहल से स्वयं किनारा न कर लें। लवणयुक्त जिह्वा से मिश्री की मिठास कभी अनुभव नहीं की जा सकती। 
           प्रीति सुराना न केवल एक कवयित्री, लेखिका व सम्पादिका हैं, वरन् एक समाजसेविका भी हैं। गौशाला को मात्र शब्दों से ही बयां नहीं करतीं बल्कि सेवा और सुश्रूषा भी करती हैं। "औरत जब तक भी रहती है" --- यह उनके रक्त में प्रवाहित वह विषय है, जिसने अनगिनत महिलाओं को लेखन से जोड़ा है। छोटी-छोटी खुशियों को जीने का प्रोत्साहन दिया है।
                प्रीति सुराना एक आवाज है, जो संगठन की शक्ति बन जाती है। अपने आपको पहचानने का हुनर सिखाती है, अपना और अपनी भाषा हिन्दी का सम्मान करना सिखाती है, परन्तु हिन्दी पर होने वाली भाषायी और राजनैतिक नाइंसाफी से द्रवित हो प्रीति सुराना इस अत्याचार और अतिक्रमण से  भीतर तक कहीं टूट सी जाती हैं।
             मन को संभालते हुए, भावों को कलमबद्ध करते हुए, कवयित्री की काव्यगत उपमाएँ पार्थिव सौंदर्य की कल्पनाओं और अलंकारों में यथार्थ गढ़ती हैं। पर्वत, बादल, आसमां, पेड़ और धूप की परछाइयाँ उनके काव्य रूपी जल में उतर अठखेलियाँ करती हैं। प्रतिपल पाठकों के इर्द-गिर्द मृदु तरंगों का एहसास लिए उनके विषय अदृश्य रूप से मन को स्पर्श कर जाते है। 

कहते हैं कि-----
           मन यदि कुबेर हो जाए तो कनक राशि हर आँगन में बरस सकती है। यही सुवर्ण राशि बरसी है ------ प्रीति सुराना की नव कृति "प्रीत के गीत" के आँगन में लगभग 90 कविताओं की अविरत झड़ी बन।
               कवयित्री की लेखन के प्रति आसक्ति सर्वश्रुत है। उनके चिन्तन की परिधि में मृदा, पृथा, अम्बर, बूँद, बदली, समन्दर जैसे नैसर्गिक विषय और अश्क, सिसकी, मौन, अन्तस, दर्द जैसे करुणरस से ओतप्रोत विषयों की महक समायी रहती है, जो जरा, व्याधि इत्यादि को परे झटक कर अपनी खुशबू बिखेरती रहती है। आशा जब एक पल कभी निराशा की स्थिति भी उत्पन्न करती है, तो कवयित्री को लगता है कि "कुछ तो टूट रहा है अंदर", कभी सोचती है "दर्द की बदलियाँ हैं, गीत कैसे लिखूँ", मानो "लिख रही हूँ एक तराना" कहकर वह "अम्बर की अलगनी" पर "आँखों के नीर" को टाँग देना चाहती हैं।  
               घोर पूर्वाग्रहों और आत्ममुग्धता की गुंजलक में फंसे इस दौर में प्रीति सुराना द्वारा लिखी गई कविताओं के विषय में कहना होगा कि इन कविताओं के पठन पाठन से आरोहमान मानदण्डों तक पहुँचने की लालसा के तहत कवयित्री ने कविता की सुनहरी देहरी पर पाँव रखे हैं। 
              प्रीति सुराना अपने लिए साहित्य रूपी भास्कर से उष्मा पाती हैं। वे लेखन में इस कदर डूबी हुई हैं कि कलम और स्याही के बिना उनके प्राण प्रफुल्लित नहीं होते। वह कभी कहती हैं कि "अच्छे दिन आने तो दो" तो कभी खुद को आईने में देख कहती हैं "अच्छे दिन खुद क्यूँ नहीं लाते", कभी "चिन्ताएँ ही शेष रहीं" आज के भागम-भाग के समय में पेशानी पर अपने अक्स छोड़ जाती है।
             "प्रीत के गीत" में विषय बाहुल्य है। जिन पाठकों को ईश्वरीय वरदहस्त की मुमुक्षा है, उनके लिये "प्रभु थामो मेरी पतवार" जैसी कविता में प्रीति सुराना ने स्वयं को मानो भगवान को सौंप दिया है। "गणपति वंदना" में भगवान गणेश के एक सौ आठ नामों का स्मरण करते हुए उन्होंने अलख जगाई है। 
             पीड़ा की पराकाष्ठा को महसूस करते हुए कवयित्री प्रीति सुराना द्वारा लिखित कविताएँ हर दिल से होकर गुजरती हैं। सर्वकालव्यापी  समसामयिक काव्य अपनी छाप छोड़ते हैं --- "भीग रहा है अन्तस् मेरा", "गीत कैसे लिखूँ", "तबियत खराब सी है, खुशी नाराज़ सी है", "दर्द की बदलियाँ हैं" जैसे अनगिनत शीर्षक पाठकीय ऐषणा को, विशेष रूप से स्त्री विमर्श को झिंझोड़ कर, एक पल को साँसों की गति तेज़ करके भावनाओं को आकण्ठ कर जाते हैं। काव्य संग्रह ने मंजुल नाद उत्पन्न कर, मन के गलियारों में रस घोला है, जिसमें कवयित्री ने सहज, स्वाभाविक, प्रतिमान रचे हैं। उनके इस प्रयास का सर्वत्र स्वागत ही होगा।
         मानव मन को गूँथने के लिये जिस डोर और सूचिका की जरूरत है ,जो प्रवाह अभिलषित है, वही कवयित्री के उद्गार हैं।

कहा जा सकता है कि ----
            आसमां कागद हो और किरणें सुनहरी स्याही, तो जो भी लिखा जाएगा अप्रतिम ही होगा।

        इन कविताओं को महज कल्पना-प्रसूत व पीड़ा-जनित ही नहीं कहा जा सकता, अपितु वे मन के भाव-तन्तुओं को प्रियतर कंपन देती हैं। विद्वज्जनों के मध्य इस नव कृति का हार्दिक स्वागत होगा। काव्यात्मक उद्गार और रसमयता के संगम पर अधिष्ठित ये "प्रीत के गीत" पाठकों का अविरत स्नेह सम्पादित करेंगे, अपनी गूँज को धरा से लेकर अम्बर तक पहुँचाने में सक्षम होंगे,  इसी विश्वास के साथ----
     डॉ. प्रीति समकित सुराना को अनन्त शुभकामनाएँ।

 रंजना श्रीवास्तव
(कवयित्री/लेखिका) 
नागपुर - 440034
मो. 9096808191
( 17/12/2020 )

*क्या संबंधों में स्थिरता के चार सेतु समझ, सहयोग, सहभोज, संवाद हैं?*

नदी के दो किनारों की तरह दो स्वतंत्र व्यक्तिव मिलकर जब अपनी रिक्तता को स्नेह जल से भरते हैं तो प्रवाहित स्नेह से उपजे अनेक संबंधों को बांधने वाला सेतु बहुत मजबूत हो यह रिश्तों की स्थिरता और प्रगाढ़ता के लिए अनिवार्य है।
कल जब यह विषय आलेख के लिए चुना तब से मस्तिष्क में बार-बार मेरे दोनों परिवार यानि घर और अन्तरा शब्दशक्ति का नाम कौंधता रहा।
मेरी समझ से मैंने 'स' को 'स' से जोड़ने का प्रयास किया जिससे  'स' का दशक स्वतः ही तैयार हो गया। आप सोच रहे होंगे 'स' का दशक आखिर क्या?
तो सबसे पहले शीर्षक से शुरू करते हैं 
 *स्नेह* से उपजे *संबंधों* की *स्थिरता* हेतु मजबूत सेतु *समझ* से उपजा सामंजस्य, सामंजस्य से पनपी *सहयोग* की भावना जिससे जीवन नैय्या का तैरना आसान हो जाता है। साथ बैठ कर भोजन करने से एक दूसरे की रुचि-अरुचि, स्वाद, स्वास्थ्य और स्वभाव के साथ मनः स्थिति का अंदाजा लगता है। *सहभोज*, स्नेहभोज, प्रीतिभोज का आयोजन खुशी के अवसर पर किया जाना मूलतः एक दूसरे के सुखदुख में शामिल होने का प्रतिकात्मक स्वरूप ही है।
और सब से अंतिम और सबसे  से महत्वपूर्ण बात है *संवाद*, समझेंगे, मिलेंगे और जानेंगे तो बात होगी, और अटल सत्य है ये कि बात करने से ही बात बनती है। संवादहीनता सारे विकल्प बंद कर देती है। संवाद जारी रहे तो गुस्से में भी मन की बात बाहर आ जाती है और बात बाहर आने से समस्या को सुलझाया जा सकता है, संवादहीनता कुंठा को जन्म देती है और कुंठा सबसे दुष्कर गरल है।
अब जाहिर सी बात है जो *स्नेह के संबंध* हैं उनकी *स्थिरता* का *सेतु* यदि *समझ*, *सहयोग*, *सहभोज* और *संवाद* से बना हो तो *सभ्यता*, *संस्कार* और *संस्कृति* से परिपूर्ण मजबूत परिवार का निर्माण तय है और जिस देश में ऐसे परिवार हों उसकी *अखंडता और अक्षुण्णता अखंडित* ही रहेगी।
मैंने कोशिश की है हमेशा घर और अन्तरा शब्दशक्ति परिवार को इस स्नेहसेतु से बांधने की। तो आ रहे हैं न आप सब एक बार मेरे आंगन में स्नेहभोज और स्नेह संवाद के लिए क्योंकि हम सब एक परिवार हैं। हैं न!

डॉ प्रीति समकित सुराना