Saturday 8 October 2016

कितनी मैं मजबूर हूं,..


कितनी मैं मजबूर हूं,..।

साथ तेरे होकर भी मैं कितनी तुझसे दूर हूं,
हालात के हाथों देखो कितनी मैं मजबूर हूं।

दो कदम चलकर जब तू खुद पास मेरे आया था,
तुझे मेरी ये सादगी और भोलापन ही भाया था,
तूने लोगों से ये सुना था मैं बहुत मगरूर हूँ,
कितनी मैं मजबूर हूं,..।

तूने मिलाकर हाथ मुझसे बांध लिया नेह का बंधन,
मैंने भी तो किया समर्पित आस,विश्वास और यह मन,
फिर भ्रांतियां ये टूटी तेरी कि मैं बहुत मशहूर हूं,
कितनी मैं मजबूर हूं,..।

चार कदम संग तभी चला जब साथ से था फायदा,
जीवन में साथी बन तो गया पर जीवनसाथी नही बना,
बिखरे जीवन के फेरे में टूटे वचनों का दस्तूर हूं,
कितनी मैं मजबूर हूं,..।

बढ़ा लिया है फासला तूने प्यार का ये दिया सिला,
कुछ न मिलेगा मेरे साथ से फिर क्यों करुं कोई गिला
जा चला जा दूर मुझसे अभी मैं गम से चूर हूं
कितनी मैं मजबूर हूं,..।,...... प्रीति सुराना

1 comment:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 09 अक्टूबर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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