Friday 24 November 2017

मैं बस तुम्हारी हूँ

मैं जब भी कभी हारी हूँ बस अपनों से हारी हूँ,
नदी होकर भी लगती मैं सबको ही खारी हूँ
माना हो तुम सागर और नही पूछोगे मेरा स्वाद
है मुझमें लाखों कमियां मगर मैं बस तुम्हारी हूँ

प्रीति सुराना

1 comment:

  1. आप सभी सुधीजनों को "एकलव्य" का प्रणाम व अभिनन्दन। आप सभी से आदरपूर्वक अनुरोध है कि 'पांच लिंकों का आनंद' के अगले विशेषांक हेतु अपनी अथवा अपने पसंद के किसी भी रचनाकार की रचनाओं का लिंक हमें आगामी रविवार(दिनांक ०३ दिसंबर २०१७ ) तक प्रेषित करें। आप हमें ई -मेल इस पते पर करें dhruvsinghvns@gmail.com
    हमारा प्रयास आपको एक उचित मंच उपलब्ध कराना !
    तो आइये एक कारवां बनायें। एक मंच,सशक्त मंच ! सादर

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