Sunday 10 December 2017

कोई नहीं

फिर अकेली खड़ी हूँ
एक ऐसे मोड़ पर
जहाँ रास्ते बहुत हैं
साथी कोई नहीं,..

पलकें बोझिल सी हैं
कितने सपनें लिए
घने अंधेरों का डर
रात सोई नहीं,..

घुट रहा मेरा मन
ये महसूस होता है
कहना चाहूँ मगर
बात कोई नहीं,...

उबल रहे हैं दर्द
पिघलना चाहते हैं
आँसू पी रही हूँ पर
आज रोई नही,..

प्रीति सुराना

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