Tuesday 9 January 2018

*पहचान*

रात देर तक खिड़की के पास खड़ी रही, आज चाँद को नहीं बल्कि टूटते हुए तारे को देखती रही मृदुला तब तक, जब तक टूटा हुआ हिस्सा ब्रम्हतत्व में विलीन नहीं हो गया।
सुबह कुछ विचलित, अनमनी और उदास सी मृदुला को देखकर आकाश ने पूछ ही लिया, क्या बात है ''मृदु तुम खुश नहीं हो मेरे साथ ?''
जवाब देने की बजाय मृदुला ने पलट कर सवाल कर लिया "आशु तुम सच में मुझसे प्यार करते हो?"
आकाश ने कहा तुम्हारे इसी सवाल से मुझे डर लगता है, तुम ही बता दो कि तुम्हें यकीन दिलाने के लिए मुझे क्या करना होगा, मेरी समझ में तो नहीं आता कि मुझे क्या करना चाहिए?
मृदुला ने डरते हुए धीरे से कहा कुछ मत करो, बस कुछ पल बेसमय, बेवजह मुझे अपनी बाहों में ले लो। पर दूसरे ही पल देखा तो आकाश बिना सुने नहाने जा चुका था।
मृदुला ने उसका टिफिन तैयार किया, और टेबल पर नाश्ता लगा दिया।
आकाश जल्दी से नाश्ता करके ऑफिस के लिए निकलते हुए, मृदुला को अपना ध्यान रखने की हिदायत देता हुआ 'आई लव यू मृदु' बोलकर निकल गया।
मृदुला कहना चाहती थी ''आशु मैं भी तुमसे बहुत ज्यादा प्यार करती हूं" पर किससे कहती उसके जवाब की प्रतीक्षा किसे थी? शब्दों और भावों को मन में दबाए पूरा दिन फिर रात, अंधेरो, चाँद और टूटते तारों की प्रतीक्षा में गुजारना था।
अब तारों के टूटे हुए अस्तित्वहीन हिस्से में ही उसे अपनी *पहचान* महसूस होती है उन तारों में नहीं जो कभी आशु की पसंद हुआ करते थे ।


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